विदेश में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों का ट्यूशन एवं होस्टल फीस के रूप में कुल खर्च 44 फीसदी बढ़ चुकी है. यह खर्च 2013-14 में 1.9 अरब डॉलर था, जो कि 2017-18 में बढ़कर 2.8 अरब डॉलर हो चुका है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2024 तक लगभग 4,00,000 भारतीय छात्र विदेशी यूनिवर्सिटीज में दाखिला लेंगे. यह आंकड़े साफ बताते हैं कि अपने छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने के मामले में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे महत्वपूर्ण देश है.
फिलहाल दुनिया भर में 50 लाख से अधिक छात्र अपने देश से बाहर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और इनमें भारतीय छात्रों की काफी बड़ी संख्या है. विदेशी शिक्षा हासिल करने के मामले में भारतीयों की पहली पसंद अमेरिका, कनाडा और यूके जैसे देश हैं. इसके बाद सिंगापुर, चीन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी और फ्रांस जैसे अन्य यूरोपीय देशों का नंबर आता है.
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले कुल भारतीय छात्रों में 85 फीसदी इन्हीं देशों में जाते हैं. हालांकि, कई अन्य देशों की यूनिवर्सिटीज में भी दाखिला लेने वाले भारतीय छात्रों की संख्या बढ़ी है.
न्यूज एजेंसी IANS की रिपोर्ट के अनुसार पॉलिसी बाजार के चीफ बिजनेस आफिसर तरुण माथुर का कहना है कि उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते वक्त मेडिकल खर्चो को कवर करना ट्रैवल इंश्योरेंस खरीदने के सबसे जरूरी कारणों में से एक है. यह कहने की जरूरत नहीं है कि विदेशों में मेडिकल खर्चे भारत की तुलना में काफी महंगे हो सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर, अमेरिका में एक डॉक्टर की कंसल्टेशन फीस 300 से 400 डॉलर के बीच है, जो कि भारत के लिए 20,500 से 27,000 रुपये के आसपास होती है. उन्होंने कहा कि ट्रैवल इंश्योरेंस न होने पर अगर एक छात्र विदेश में बीमार पड़ता है, तो उसे अपने एक सप्ताह का बजट सिर्फ डॉक्टर से परामर्श / इमरजेंसी रूम विजिट चार्जेज में ही खर्च करना पड़ेगा, जिसमें दवाओं की कीमत शामिल नहीं होती. ऐसे में इंश्योरेंस कवर लेना बेहद जरूरी होता है ताकि बीमार पड़ने पर होने वाले खर्च से बचा जा सके.
माथुर ने कहा कि स्टूडेंट ट्रैवल इंश्योरेंस आपको मेडिकल इमरजेंसी के लिए व्यापक कवरेज देने के साथ ही अन्य संभावित मुश्किलों के लिए भी सुरक्षा देता है, जैसे कि पढ़ाई में रुकावट, स्पॉन्सर प्रोटेक्शन, यूनिवर्सिटी की मान्यता रद्द होना, लैपटॉप/टेबल को नुकसान, सफर के दौरान बैगेज, पासपोर्ट या अन्य जरूरी दस्तावेज खो जाना. ऐसे में यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि एक स्टूडेंट ट्रैवल इंश्योरेंस खरीदते वक्त कुछ बेहद गंभीर पहलुओं को ध्यान में रखा जाए.
सबसे महत्वपूर्ण पहलूओं में से एक यह देखना होगा कि आपका स्टूडेंट ट्रैवल इंश्योरेंस आपकी यूनिवर्सिटी द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करता हो. स्टूडेंट ट्रैवल इंश्योरेंस प्लान का कवरेज यूनिवर्सिटी के दिशानिर्देशों के अनुकूल ना होने पर संबंधित यूनिवर्सिटी के पास स्टूडेंट का इंश्योरेंस वेवर बेनिफिट अस्वीकार करने या एडमिशन ही रद्द करने का पूरा अधिकार होगा.
अमेरिका और कनाडा की अधिकतर यूनिवर्सिटीज की यह मांग होती है कि अंतर्राष्ट्रीय छात्र अपने लिए एक ऐसा इंश्योरेंस प्लान रखें जो पहले से मौजूद बीमारियों, ड्रग्स की आदत, प्रेग्नेंसी और मानसिक बीमारियों के सभी खर्चो को किसी भी सब-लिमिट के बिना कवर करता हो.
इसके अलावा, कुछ यूनिवर्सिटीज इस बात पर भी जोर देती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय छात्र अपने गृह देशों की इंश्योरेंस कंपनियों से ही ट्रैवल इंश्योरेंस खरीदें. विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों के लिए भी यह बेहतर होगा कि भारत की इंश्योरेंस कंपनियों से ही ट्रैवल पॉलिसी खरीदें क्योंकि यहां कीमतें बेहद कम होती हैं और छात्रों को अधिक फायदे भी मिलते हैं.