नज़र जब ढूँढने निकली तो छूकर आसमाँ आई
छिपा था तू जहाँ लेकिन वहाँ तक ये कहाँ आई
लुटाते थे मुहब्बत में,जो हमपे दिल की धड़कन को
ना जाने क्या हुआ उनको जो नफ़रत दरमियाँ आई
मैं तन्हा थी अकेली थी मगर फिर भी मुक्कमल थी
जमाने से मिली जब से मुसीबत में ये जाँ आई
छिपा के दिल में रक्खा था जो तेरी याद का मोती
मैं अब सीपी सी खाली हूँ जो मोती था गवाँ आई
मैं भटकी हूँ कभी जब उलझनों के घोर जंगल में
मुझे तब तब सही इक राह दिखलाने को माँ आई
Dr.Bhawna Kunwar
Sydney