धुंडीराज गोविंद फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक कहा जाता है। 30 अप्रैल 1870 को जन्मे फाल्के को बाद सिनेमा के प्रशंसकों ने दादा साहेब फाल्के के नाम से पुकारा। हर साल 30 अप्रैल को उन्हें खूब याद किया जाता है लेकिन उनके घरवालों को तकलीफ इस बात की है कि देश के इतने बड़े मनोरंजन उद्योग की नींव डालने वाले फाल्के को भारत सरकार ने अब तक भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया है। वे इस बात से भी दुखी दिखते हैं कि फाल्के पुरस्कारों के नाम पर हर साल नई नई दुकानें उग रही हैं। फाल्के पुरस्कारों के नाम पर लोग लाखों की वसूली कर रहे हैं और इसके चलते भारत सरकार से मिलने वाले सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। दादा साहब फाल्के के नाती चंद्रशेखर पुसालकर ने अपने नाना के जन्मदिन पर ‘अमर उजाला’ से एक लंबी बातचीत की।
‘मराठी अभिनेत्री से मांगे 10 लाख’
चंद्रशेखर पुसालकर बताते हैं, ‘मुझे मुंबई में बंटने वाले दादा साहेब फाल्के अवार्ड्स में खास मेहमान के तौर पर लोगों ने खूब आमंत्रित किया। मैने देखा कि लोग पैसे लेकर ऐसे लोगो को अवार्ड दे रहे है जो उस काबिल नहीं। उसी के बाद से मैने ऐसे किसी भी अवार्ड समारोह में जाना बंद कर दिया। आपको जानकर हैरानी होगी कि एक बार मराठी की एक मशहूर अभिनेत्री का मेरे पास फोन आया कि अमेरिका में उनसे कोई दादा साहेब फाल्के अवार्ड का आयोजक मिला है और अवार्ड के लिए दस लाख की मांग कर रहा है। मैं तो यह सुनकर भौचक्का रह गया और बहुत दुखी हुआ।’
कोई भी ले जाता है फाल्के अवार्ड’
दादा साहेब फाल्के के परिवार वाले खुद को भारत सरकार का ऋणी मानते हैं कि दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की शुरुआत उनके नाम पर की गई। पुसालकर कहते हैं, ‘इस अवार्ड की वजह से आज दादा साहेब फाल्के को हर कोई जनता है। भले ही दादा साहेब फाल्के के बारे में ज्यादा पता न हो लेकिन इतना तो लोगो को पता है कि कोई थे दादा साहेब फाल्के। इस अवार्ड से दादा साहेब फाल्के को लोग घर घर जानते हैं। लेकिन, इसी पुरस्कार से मिलते जुलते पुरस्कारों के नाम पर पर लोग दुकानदारी चलाते हैं तो दुख होता है। दुख होता है ये देखकर कि एक तरह अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियत को दादा साहेब फाल्के अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जाता है तो दूसरी तरह यहां मुंबई में कोई भी फाल्के के नाम पर अवार्ड लेकर चला जाता है।’
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‘कौन हैं फाल्के अवार्ड आयोजित करने वाले’
चंद्रशेखर पुसालकर नकली फाल्के पुरस्कारों के आयोजनों से बहुत त्रस्त हैं। वह कहते हैं, ‘जो लोग भी दादा साहेब फाल्के के नाम पर अवार्ड आयोजित करते रहे हैं अगर उनसे दादा साहेब फाल्के के बारे में कोई दस बात पूछे तो नहीं बता पाएंगे। अगर अवार्ड अच्छे काम के लिए कर रहे हैं तो ठीक है लेकिन अगर अवार्ड के नाम पर पैसा बटोरना है तो गलत है। दुर्भाग्य से लोगो ने दादा साहेब फाल्के के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं। मैं सरकार से अपील करता हूँ कि जो लोग भी ये अवार्ड समारोह कर रहे हैं, उनसे पूछा जाए कि ये समारोह करने के लिए पैसा उनके पास कहां से आता है, उनकी आय के स्रोत क्या हैं, इनकम टैक्स भरते हैं कि नहीं? सरकार ऐसे अवार्ड को बंद करने की पहल करे तो मैं भी मदद जरूर करूंगा।’
अब तक क्यों नहीं दिया भारत रत्न’
चंद्रशेखर पुसालकर हाल ही में दादा साहेब फाल्के मेमोरियल फाउंडेशन से जुड़े हैं। ये फाउंडेशन फाल्के के नाम पर मुंबई में कुछ सकारात्मक आयोजन करने की योजना बना रहा है। पुसालकर को इस बात का भी दुख है कि जिन दादा साहेब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक कहा जाता है, जिनके सिनेमा के लिए किए गए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, उन्हें आज तक किसी भी सरकार ने भारत रत्न नहीं दिया। पुसालकर कहते हैं, ‘सिनेमा की एक गायिका को तो भारत रत्न मिल गया लेकिन शख्स ने भारत में सिनेमा की नींव रखी उनको यह सम्मान आज तक नहीं मिला। हमे उस गायिका से कोई दुश्मनी नहीं है। हम भी उनके बहुत बड़े फैन हैं लेकिन मैं भारत सरकार से यह सवाल करता हूं कि जिन्होंने देश में सिनेमा की नींव रखी उन्हें अभी तक भारत रत्न का पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया। हमें तो ये बात कहने में भी शर्म महसूस होती है।’
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‘अंतर्राष्ट्रीय स्तर की बायोपिक बने’
भारतीय सिनेमा में इन दिनों बायोपिक का दौर चल रहा है लेकिन जिसने सिनेमा को जन्म दिया उनकी बायोपिक हिंदी में बनाने कोई आगे नहीं आ रहा। 2008 में सर्वश्रेष्ठ मराठी फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘हरिश्चंद्राची फैक्टरी’ का जिक्र चलने पर पुसालकर कहते हैं कि ऐसी फिल्में और भी बननी चाहिए और सभी भारतीय भाषाओं में बननी चाहिए। ऐसी फिल्मों को देखकर ना जाने कितने और फाल्के देश में बन सकते हैं। वह कहते हैं, ‘लोग मेरे पास आते हैं दादा साहेब फाल्के की बायोपिक का विचार लेकर। लेकिन, उनकी पूरी योजना बस फिल्म के अधिकार हासिल करने पर केंद्रित रहती है। मैं कहता हूं कि पूरी तैयारी के साथ पूरी योजना बनाकर आओ। एक भव्य, विशाल, नयनाभिराम और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म बनाओ जिसे पूरी दुनिया देखे और कहे कि देखो, ये वह शख्स है जिसने अपनी सारी जमा पूंजी जुटाकर भारत देश में सिनेमा की नींव रखी।’