सिडनी | विशेष संवाददाता
ऑस्ट्रेलिया की लेबर सरकार द्वारा बिजली दरों पर नियंत्रण के वादे को आम जनता के बीच भले ही राजनीतिक समर्थन मिल रहा हो, लेकिन ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इसे एक गंभीर खतरे की घंटी बताया है — विशेष रूप से छोटे ऊर्जा रिटेलर्स के लिए, जो पहले से ही बेहद कम मुनाफे पर काम कर रहे हैं।
ऊर्जा मंत्री क्रिस बोवेन द्वारा प्रस्तावित "डिफॉल्ट मार्केट ऑफर" (DMO) की समीक्षा और दरों में संभावित कटौती का उद्देश्य उपभोक्ताओं को राहत देना है, लेकिन इससे बिजली बेचने वाले छोटे और स्वतंत्र रिटेलर्स की मुनाफे की संभावनाएं और भी सिमट सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति अल्पकालिक लाभ जरूर दे सकती है, लेकिन दीर्घकाल में ऊर्जा बाजार को नुकसान पहुंचा सकती है।
ऊर्जा बाजार के एक विश्लेषक ने कहा, "मूल्य सीमा की यह आक्रामक रणनीति कुछ रिटेल कंपनियों को बंद करने की कगार पर ला सकती है, जिससे प्रतिस्पर्धा कम होगी और अंततः उपभोक्ताओं के लिए विकल्प सीमित हो जाएंगे।"
पिछले वर्षों में ऊर्जा की बढ़ती लागत, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां पहले ही रिटेल क्षेत्र पर दबाव बना चुकी हैं। अब यदि सरकारी हस्तक्षेप से बिजली की दरों को कृत्रिम रूप से कम किया जाता है, तो यह रिटेल व्यवसाय के लिए अस्थिर वातावरण पैदा कर सकता है।
लेबर सरकार का कहना है कि उसका उद्देश्य महंगाई से जूझ रहे आम उपभोक्ताओं को राहत देना है, और DMO दरों की समीक्षा उसी दिशा में एक कदम है। लेकिन उद्योग विशेषज्ञों का आग्रह है कि सरकार इस नीति के दीर्घकालिक प्रभावों पर भी ध्यान दे, ताकि ऊर्जा क्षेत्र में स्थायित्व और प्रतिस्पर्धा बनी रहे।
मुख्य बिंदु:
DMO दरों में कटौती का प्रस्ताव छोटे ऊर्जा रिटेलर्स के लिए जोखिमभरा
नीति से अल्पकालिक लाभ, लेकिन दीर्घकालिक अस्थिरता की आशंका
रिटेल बाजार में प्रतिस्पर्धा घटने का खतरा