सुरक्षा पर बड़ा फैसला: पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक में कई निर्णायक फैसले लिए गए। इसमें 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने के बाद, अब 1972 के शिमला समझौते को लेकर भी गंभीर रुख अपनाया गया है।
शिमला समझौते का निलंबन – क्या बदलेगा?
पाकिस्तान ने हाल ही में बयान जारी कर कहा कि वह भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को निलंबित करने के अधिकार का प्रयोग करेगा। इसमें शिमला समझौता भी शामिल है, जो अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) की पवित्रता सुनिश्चित करता था।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि पाकिस्तान इस समझौते को आधिकारिक रूप से निलंबित करता है, तो भारत भी अब LoC को मानने को बाध्य नहीं रहेगा। इसका सीधा तात्पर्य है कि भारत अपनी सुरक्षा नीति के तहत LoC पार कर आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र होगा।
नासमझी में उठाया कदम?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान ने यह कदम जल्दबाजी और बौखलाहट में उठाया है। समझौतों को एकतरफा निलंबित करने का सीधा नुकसान उसे खुद ही उठाना पड़ेगा। खासतौर से तब, जब भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंक के पनाहगाह के रूप में चित्रित करता रहा है।
पाकिस्तान की रणनीति पर सवाल
पाकिस्तान ने बयान में यह नहीं कहा कि वह केवल अधिकार को सुरक्षित रखता है, बल्कि उसने स्पष्ट किया है कि वह इसका प्रयोग करेगा। इसका मतलब है कि भारत-पाक द्विपक्षीय रिश्तों में औपचारिक रूप से दरार पैदा हो चुकी है।
नतीजे क्या होंगे?
भारत अब सीमित नहीं रहेगा – आतंक के विरुद्ध सीधी कार्रवाई संभव।
पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति और कमजोर होगी।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत को आक्रामक रुख अपनाने का औचित्य मिलेगा।
निष्कर्ष:
शिमला समझौते की समाप्ति पाकिस्तान की एक बड़ी रणनीतिक चूक साबित हो सकती है। भारत अब सिर्फ रक्षात्मक नहीं, आक्रामक नीति पर काम करेगा, और पाकिस्तान को इसका राजनयिक, सामरिक और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।