वॉशिंगटन/तेहरान/तेल अवीव:
ईरान और इज़रायल के बीच लगातार बढ़ते युद्ध के बीच अब पूरी दुनिया की नजर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर टिकी हुई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने बड़ा सवाल यह है — क्या ट्रंप इस संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान निकाल पाएंगे, या फिर अमेरिका इज़रायल का साथ देते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों को तबाह करने में सहयोग करेगा?
मौजूदा स्थिति में ट्रंप की हर चाल निर्णायक मानी जा रही है। हाल ही में उन्होंने जी-7 शिखर सम्मेलन में इज़रायल का खुलकर समर्थन किया और ईरान को "गंभीर परिणाम भुगतने" की चेतावनी दी थी। उनके इस बयान के बाद खाड़ी क्षेत्र में अमेरिकी नौसेना की गतिविधियाँ तेज़ हो गई हैं।
सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं व्हाइट हाउस को सौंपी हैं। इससे आशंका बढ़ गई है कि अमेरिका जल्द ही एक विशेष ऑपरेशन में इज़रायल की मदद कर सकता है, जिसका लक्ष्य ईरान की नतांज़ और फोर्दो जैसी प्रमुख परमाणु स्थलों को नष्ट करना हो सकता है।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और कई अरब देशों ने ट्रंप से शांति प्रक्रिया को प्राथमिकता देने की अपील की है। लेकिन व्हाइट हाउस की ओर से अब तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया गया है कि अमेरिका संघर्ष को कूटनीति से हल करना चाहता है या सैन्य कार्रवाई के रास्ते पर आगे बढ़ेगा।
ट्रंप की चुप्पी: रणनीति या दबाव?
राष्ट्रपति ट्रंप ने बीते 48 घंटों में कोई औपचारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है। व्हाइट हाउस के सूत्रों का कहना है कि वे "स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।"
इस बीच तेल अवीव, हाइफा और तेहरान में हमलों का सिलसिला जारी है। दोनों देशों में सैकड़ों लोग हताहत हो चुके हैं और हजारों नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है।
निष्कर्ष:
मध्य पूर्व की यह आग वैश्विक स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। अब सबकी निगाहें ट्रंप की अगली घोषणा पर टिकी हैं — क्या वह एक शांति दूत बनेंगे, या फिर युद्ध को और भड़काने वाले नेता के रूप में इतिहास में दर्ज होंगे?