नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में संसद में पेश किया गया वक्फ संशोधन विधेयक 2025 देशभर में बहस का विषय बना हुआ है। सरकार का दावा है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता के लिए जरूरी है, जबकि विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों में कटौती मान रहा है। आइए जानते हैं इस विधेयक में क्या हैं प्रमुख प्रावधान, क्या बदलेगा, और इस पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं क्या रही हैं।
विधेयक में स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि 1 मार्च 2025 तक यदि कोई संपत्ति वक्फ के रूप में दर्ज है, और उस पर कोई कानूनी विवाद नहीं है, तो उसे वक्फ संपत्ति ही माना जाएगा। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों को उनकी संपत्तियों पर स्थायित्व और अधिकार देना बताया गया है।
अब तक वक्फ ट्रिब्यूनल में दो सदस्य होते थे, पर संशोधन के बाद यह संख्या बढ़ाकर तीन कर दी गई है, जिनमें से एक सदस्य गैर-मुस्लिम भी हो सकता है। इसमें एक इस्लामी कानून का जानकार और एक न्यायिक अधिकारी भी शामिल होगा। सरकार का कहना है कि इससे निर्णय अधिक निष्पक्ष और व्यावसायिक होंगे।
नए विधेयक में एक और महत्वपूर्ण संशोधन किया गया है — यदि कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर इस्लाम अपनाता है और फिर वक्फ को संपत्ति दान करता है, तो उसे कम से कम पांच वर्षों से मुस्लिम होना अनिवार्य होगा। यह प्रावधान जमीन हड़पने या गलत इरादे से धर्म परिवर्तन करके संपत्तियों के दान पर रोक लगाने के उद्देश्य से लाया गया है।
सरकार ने यह भी प्रावधान किया है कि वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा और आम जनता को ऑनलाइन जानकारी उपलब्ध होगी। साथ ही, बोर्ड की कार्यप्रणाली की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र समिति का भी गठन प्रस्तावित है।
एनडीए के घटक दलों — टीडीपी, जेडीयू और अन्य ने विधेयक को लेकर सरकार का समर्थन किया है। खासतौर से जेडीयू, जिसने पहले विरोध के संकेत दिए थे, अब इसके समर्थन में दिख रही है। यह अमित शाह और जेडीयू नेताओं के बीच हुई बैठकों का नतीजा माना जा रहा है।
विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक का जोरदार विरोध किया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई संस्थाओं ने इसे मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप बताया है। उनके अनुसार, वक्फ संपत्तियों पर गैर-मुस्लिम हस्तक्षेप न केवल संविधान के खिलाफ है बल्कि समुदाय की भावना को भी ठेस पहुंचाता है।
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा बन गया है। जहां एक ओर सरकार इसे सुधारवादी कदम बता रही है, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग इससे असहमत है। आने वाले समय में इस पर संसद में होने वाली बहस यह तय करेगी कि यह विधेयक केवल संपत्ति प्रबंधन का साधन है या धार्मिक अधिकारों पर अंकुश लगाने का प्रयास।