हिंदी तीसरी भाषा अनिवार्य: मुख्यमंत्री फडणवीस का बचाव, विपक्ष का विरोध

हिंदी तीसरी भाषा अनिवार्य: मुख्यमंत्री फडणवीस का बचाव, विपक्ष का विरोध

मुंबई, 17 अप्रैल (हि.इंडिया संवाददाता)
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बृहस्पतिवार को राज्य सरकार के उस निर्णय का पुरजोर समर्थन किया, जिसमें शैक्षणिक सत्र 2025-26 से मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम के कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में लागू किया गया है। हालांकि, इस निर्णय का कांग्रेस और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना सहित कई विपक्षी दलों ने तीव्र विरोध किया है।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा, "हमने नई शिक्षा नीति (NEP) पहले ही लागू कर दी है। इसलिए यह कोई नया निर्णय नहीं है। महाराष्ट्र में हर व्यक्ति को मराठी आनी चाहिए, साथ ही देश में एक संवाद की भाषा होनी चाहिए। हिंदी ऐसी भाषा है जिससे पूरे देश में संवाद संभव हो सकता है। यह प्रयास उसी दिशा में है।"

उन्होंने आगे कहा, "अगर कोई अंग्रेज़ी या अन्य कोई भी भाषा सीखना चाहता है, तो उस पर कोई रोक नहीं है। सभी को मराठी के साथ-साथ देश की अन्य भाषाओं का भी ज्ञान होना चाहिए। केंद्र सरकार का भी यही विचार है कि देश में संवाद के लिए एक साझा भाषा हो।"

मुख्यमंत्री के अनुसार, राज्य शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने दो राज्य पाठ्यचर्या रूपरेखाएं तैयार की हैं – एक फाउंडेशन स्तर के लिए और एक स्कूल स्तर के लिए। स्कूल शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली स्टीयरिंग कमेटी ने इन रूपरेखाओं को स्वीकृति दे दी है।

इस फैसले का विरोध करते हुए कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने मांग की कि राज्य सरकार तत्काल इस अधिसूचना को वापस ले। उन्होंने कहा, "मराठी महाराष्ट्र की मातृभाषा है और शिक्षा व प्रशासन में मराठी और अंग्रेज़ी का प्रयोग होता है। ऐसे में हिंदी को जबरन तीसरी अनिवार्य भाषा बनाना मराठी भाषा और पहचान पर हमला है। तीसरी भाषा को वैकल्पिक रखा जाना चाहिए, अनिवार्य बनाना केंद्र द्वारा राज्यों पर दबाव डालने का प्रयास है जो संघवाद के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।"

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के महासचिव संदीप देशपांडे ने भी हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने पर विरोध जताया। उन्होंने कहा, "भारत की स्वतंत्रता के बाद भाषायी आधार पर राज्यों का गठन हुआ था। अब किसी अन्य राज्य की भाषा हम पर नहीं थोपी जा सकती। महाराष्ट्र में मराठी अनिवार्य होनी चाहिए। तीसरी भाषा वैकल्पिक हो सकती है, लेकिन हिंदी को अनिवार्य बनाने का हम विरोध करते हैं।"

उन्होंने सवाल उठाया, "क्या महाराष्ट्र में मराठी को प्राथमिकता देने पर चर्चा करना पड़े, तो यह राज्य का दुर्भाग्य है। देश की सभी भाषाएं जीवित रहनी चाहिए, लेकिन तीसरी भाषा का चयन छात्र की इच्छा पर आधारित होना चाहिए। हिंदी क्यों सीखी जाए – यह भी एक विचारणीय प्रश्न है।"