अब तक पंजाबी नेतृत्व में रही कनाडाई राजनीति, अब गुजराती भी मैदान में – क्या इससे कमजोर होगा चरमपंथी आंदोलन?

अब तक पंजाबी नेतृत्व में रही कनाडाई राजनीति, अब गुजराती भी मैदान में – क्या इससे कमजोर होगा चरमपंथी आंदोलन?

कनाडा की राजनीति में दशकों से पंजाबी समुदाय का दबदबा रहा है, खासकर पंजाब से आए सिख नेताओं की सशक्त मौजूदगी ने इस देश की मुख्यधारा में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। लेकिन अब राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है – गुजराती समुदाय की सक्रिय भागीदारी।

इस महीने के आखिर में होने जा रहे आम चुनाव में पहली बार गुजराती मूल के चार उम्मीदवार मैदान में हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों से लिबरल, कंजरवेटिव और एनडीपी पार्टियों के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। यह बदलाव सिर्फ प्रतिनिधित्व का विस्तार नहीं है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक संदेश भी देता है – कनाडा में अब बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक भारतीय मूल के लोग राजनीतिक रूप से संगठित होकर अपने समुदायों के हितों की आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।

राजनीति में पंजाबी दबदबा: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पंजाबी, विशेषकर सिख समुदाय, लंबे समय से कनाडा की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। पूर्व रक्षामंत्री हरजीत सज्जन और एनडीपी नेता जगमीत सिंह जैसे चेहरों ने न सिर्फ भारतीय मूल के लोगों का गौरव बढ़ाया, बल्कि देश की मुख्यधारा में दक्षिण एशियाई प्रभाव को मज़बूती दी।

हालांकि, बीते कुछ वर्षों में कुछ चरमपंथी तत्वों के कारण सिख राजनीति पर अलगाववाद के आरोप भी लगते रहे हैं, जिससे भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास आई। ऐसे में गुजराती नेताओं का उदय एक नया संतुलन बना सकता है।

गुजरातियों की एंट्री: नई राजनीति की बयार?

गुजराती समुदाय, जिसे आमतौर पर व्यापार, उद्यम और शांतिपूर्ण जीवनशैली के लिए जाना जाता है, अब राजनीतिक मंच पर भी कदम रख रहा है। इनमें से कुछ उम्मीदवारों का कहना है कि वे कनाडा में भारतीय मूल के सभी लोगों की एकता, सामाजिक विकास और द्विपक्षीय रिश्तों को मज़बूत करने के एजेंडे के साथ आगे आ रहे हैं।

क्या इससे चरमपंथी आंदोलन कमजोर पड़ेगा?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि गुजराती उम्मीदवारों की उपस्थिति से कनाडाई राजनीति में विविधता बढ़ेगी और दक्षिण एशियाई समुदाय के भीतर संतुलन बनेगा। इससे एकतरफा विचारधारा या चरमपंथी एजेंडे को कमज़ोरी मिल सकती है, और एक अधिक समावेशी, व्यावहारिक नेतृत्व उभर सकता है।

नया चुनाव शेड्यूल: अप्रैल के अंत में मतदान

गौरतलब है कि कनाडा में आम चुनाव पहले अक्टूबर में होने थे, लेकिन प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने इसे अप्रैल के अंत तक स्थगित कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक, यह निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संभावित प्रभाव और सुरक्षा संबंधी कारणों के चलते लिया गया।

निष्कर्ष

भारतीय मूल के नेताओं का बढ़ता प्रभाव कनाडा की लोकतांत्रिक परंपरा को समृद्ध कर रहा है। अब देखना यह है कि गुजराती नेताओं की यह नई लहर किस तरह से न केवल राजनीतिक समीकरणों को बदलती है, बल्कि भारत-कनाडा संबंधों को भी एक नई दिशा देती है।