ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर एक बार फिर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पर बहस तेज हो गई है। हाल ही में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक, देश के केवल आधे छात्र ही गणित, विज्ञान और पठन जैसे बुनियादी विषयों में औसत या उससे ऊपर प्रदर्शन कर पा रहे हैं। यह स्थिति न सिर्फ अभिभावकों बल्कि शिक्षाविदों के लिए भी चिंता का विषय बन गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के ढांचे में अधिक ध्यान सांस्कृतिक समावेश पर दिया गया है, जिससे शिक्षा का मूल उद्देश्य कमजोर होता दिख रहा है। उदाहरण के तौर पर, अब कुछ गणित की कक्षाओं में ‘इंडिजिनस’ यानी आदिवासी परंपराओं जैसे नृत्य, कथाएँ और टोकरी बुनाई जैसी गतिविधियों को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया गया है।
कुछ शिक्षकों और अभिभावकों का मानना है कि यह तरीका बच्चों को विषय की मूल अवधारणाओं से भटका रहा है। "हम सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हैं, लेकिन उसे गणित और विज्ञान जैसी तकनीकी विषयों में इस तरह जोड़ना कि मूल विषय पीछे छूट जाए, यह शिक्षा के स्तर को नुकसान पहुंचा रहा है," एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।
वहीं शिक्षा विभाग का कहना है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में ‘इंडिजिनस नॉलेज’ को शामिल करने का उद्देश्य छात्रों को विविध सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अवगत कराना है, जिससे उनमें सामाजिक समझ और समावेश की भावना विकसित हो सके।
हालांकि, लगातार गिरते परिणाम इस प्रयास पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। कई शिक्षाविद अब मांग कर रहे हैं कि पाठ्यक्रम की समीक्षा की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि सांस्कृतिक पहलुओं के समावेश से बच्चों की अकादमिक गुणवत्ता प्रभावित न हो।
निष्कर्षतः, यह स्पष्ट है कि शिक्षा में सुधार की आवश्यकता है – एक ऐसा संतुलन जिसमें न तो परंपराएं पीछे रहें और न ही विज्ञान, गणित और पठन जैसे मुख्य विषयों की गुणवत्ता से समझौता हो।