ब्रिटेन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा झटका उस समय लगा जब एक अदालती फैसले के बाद डिएगो गार्सिया द्वीप को लेकर उसकी पकड़ कमजोर हो गई है। यह द्वीप सामरिक दृष्टिकोण से न केवल ब्रिटेन, बल्कि अमेरिका और उनके खुफिया गठबंधन "फाइव आइज़" (Five Eyes) के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस निर्णय के साथ ही एक ऐतिहासिक युग का अंत हो गया, जब ब्रिटिश साम्राज्य का "सूर्य कभी अस्त नहीं होता था"।
डिएगो गार्सिया, हिंद महासागर के मध्य में स्थित है और ब्रिटेन के स्वामित्व वाले ब्रीटिश इंडियन ओशियन टेरिटरी (BIOT) का हिस्सा रहा है। यह द्वीप अमेरिकी रक्षा बलों के लिए एक प्रमुख सैन्य अड्डा भी है, जो मध्य-पूर्व और एशिया में संचालन के लिए रणनीतिक आधार प्रदान करता है।
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice - ICJ) ने इस द्वीप को लेकर मौरिशस के दावे को मान्यता दी और इसे उपनिवेशवाद की विरासत बताते हुए मौरिशस को लौटाने की सिफारिश की। इसके बाद यूएन महासभा ने भी इसी दिशा में मतदान किया, जिससे ब्रिटेन पर राजनयिक दबाव और बढ़ गया।
इस निर्णय को ब्रिटेन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक हार माना जा रहा है। इससे न केवल उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर पड़ा है, बल्कि उसके पारंपरिक वैश्विक साम्राज्य की स्थिति भी कमजोर हुई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना ब्रिटेन के लिए "पश्चिमी शक्ति के पतन" का प्रतीक बन सकती है।
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच खुफिया जानकारी साझा करने वाला Five Eyes गठबंधन भी इस घटनाक्रम से प्रभावित हो सकता है। डिएगो गार्सिया जैसे सामरिक ठिकानों की स्थिति अगर अनिश्चित रहती है तो यह गठबंधन के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सकता है।
भारत के लिए यह घटनाक्रम सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। हिंद महासागर में शक्ति संतुलन का बदलाव भारत की समुद्री रणनीति को प्रभावित कर सकता है। भारत मौरिशस के साथ घनिष्ठ संबंध रखता है, और यह स्थिति उसे क्षेत्र में अधिक प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर भी दे सकती है।
निष्कर्ष:
डिएगो गार्सिया पर यह अदालती निर्णय सिर्फ एक द्वीप को लेकर नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सत्ता संतुलन, उपनिवेशवाद की विरासत, और आधुनिक भू-राजनीति के समीकरणों को नए सिरे से परिभाषित करने वाला फैसला बनता जा रहा है। ब्रिटेन के लिए यह ऐतिहासिक क्षण, उसके साम्राज्य के ढलते सूरज की एक और पुष्टि है।